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भाई बहिन का पवित्र त्योहार रक्षाबंधन लेखनी प्रतियोगिता -30-Aug-2023


                         भाई  वहिन का पवित्र  त्योहार  रक्षाबंधन 

       रक्षाबंधन  का पवित्र त्योहार  श्रावण  महीने की पूर्वमासी को मनाया जाता है। इस दिन बहिनें  अपने भाईयौ को राखी बांधती  है। भाई  अपनी बहिन की रक्षा का बचन देते हैं। यह हमारे सनातन धर्म  का सबसे पवित्र  त्योहार  है।

          रक्षाबंधन  के इस पवित्र   त्योहार  को मनाने के विषय में अनेक पौराणिक  व एतिहासिक  कथाए  प्रचलित  है उनमें से एक कथा कृष्ण  व द्रोपदी  की कथा भी आती है।

         महाभारत की कथा में शिशुपाल की कथा वर्णन है यह शिशुपाल पाण्डवौ द्वारा  राजसूय यज्ञ के समय सभा में मौजूद था।

             शिशुपाल तीन जन्मौ से भगवान विष्णु से बैर रखता आरहा था।यह भगवान विष्णु के पार्षद जय विजय में से विजय था। ये दोनौ पहले जन्म मे हिरण्यकश्यप व हिरण्याक्ष हुए दूसरे जन्म में रावण व कुम्भकर्ण हुऐ अब तीसरा जन्म था जिसमें कंस व शिशुपाल हुए।

        शिशुपाल बासुदेव की बहिन व चेदी के राजा दमघोष का बेटा था  इस तरह वह श्रीकृष्ण की बुआ का बेटा अर्थात श्रीकृष्ण का भाई था।

      शिशुपाल के जन्म की कहानी भी बहुत अद्भुत है। जब शिशुपाल का जन्म हुआ था तब उसके चार भुजाऐ व तीन नेत्र थे। वह जन्म के समय गधे की भांति रुदन कर रहा था।

      शिशुपाल का रोना व तीन नैत्र व चार भुजाऔ के कारण उसके माता पिता उसका त्याग करना चाहते थे।
परन्तु उसी समय आकाशवाणी हुई कि यह बालक आगे चलकर बहुत बलशाली होगा और इसका वध उसी ब्यक्ति के हाथौ होगा जिसकी गोद मे जाते ही यह सामान्य हो जायेगा।

          फिर तो वहाँ उपस्थित सबकी गोद मे बारी बारी से दिया गया वह श्रीकृष्ण की गोद में जाकर ठीक होगया अर्थात उसके दो हाथ व दो नेत्र रहगये।

        उसकी माँ ने डरकर श्रीकृष्ण से बचन लिया कि वह इसके सौ अपराध क्षमा करदेंगा। श्रीकृष्ण ने अपनी बुआ को यह बचन दे दिया।

   शिशुपाल ने जरासंध के साथ मिलकर बहुत बार मथुरा पर आक्रमण करके श्रीकृष्ण को मारना चाहा। उधर रुक्मिणी का भाई रुक्म रुक्मिणी की शादी शिशुपाल से करना चाहता था। परन्तु रुक्मिणी श्रीकृष्ण को चाहती थी इसलिए रुक्मिणी ने एक ब्राह्मण के  द्वारा श्रीकृष्ण के पास आपना संदेश भिजवा दिया था।

      इसीलिए श्रीकृष्ण रुक्मिणी का अपहरण करके द्वारिका लेगये।और इससे शिशुपाल नाराज होगयाऔर श्री कृष्ण से बदला लेने की चेष्टा करने लगा।

     श्रीकृष्ण को अपनी बुआ को दिया बचन याद था अतः वह शिशुपाल के अपमानौ की गिनती करते जारहे थे।

    जब श्रीकृष्ण जरासंध का बध करवाकर इन्द्रप्रस्थ वापिस आ गयेऔर उन्हौने युधिष्ठर को राजसूय यज्ञ करने की तैयारी के लिए कह दिया।

      युधिष्ठर ने अपने भाईयौ के साथ मिलकर राजसूय यज्ञ की तैयारी करली। सारी तैयारी होगयी थी सभी राज्यौ के राजा भी राजसूय यज्ञ मे आ चुके थे।

    अब राजसूय यज्ञ के लिए अग्र पूजा के लिए किसी देवता का चुनाव करना था। सभी लोग आपस में बिचार करने लगे।

     सहदेव ने श्रीकृष्ण के नाम का अनुमोदन किया और कहा कि श्रीकृष्ण से और बडा़ देवता कौन है उनको शिवजी भी मानते है अतः अग्रपूजा के वही अधिकारी है।।
      वहाँ उपस्थित भीष्म पितामह,गुरु द्रोणाचार्य, राजा द्रुपद, विदुर, कृपाचार्य व अन्य उपस्थित राजाऔ द्वारा स्वीकृति प्रदान करने पर शिशुपाल को क्रोध आगया।

   शिशुपाल  सभा खडे़ होकर जोर से बोला," इस सभा में सहदेव से ज्यादी  ज्ञानी तो बहुत बैठे है फिर यह अधिकार इस बालक को  किसने दिया। मैं श्रीकृष्ण का विरोध करता हूँ  यह ग्वाला अग्र पूजा का अधिकारी कैसे हो सकता है। यह तो भगोडा़ है मथुरा छोड़कर द्वारिका भाग गया है।इसका कोई कुल नही कोई जाति नहीं है कहीं पैदा हुआ और कहीं पाला गया है।बैसे भी इसके कुल को ययाति के द्वारा शाप लगा हुआ है।"

     इसप्रकार शिशुपाल श्रीकृष्ण का अपमान करके गालिया देने लगा। सभी सभासद उसको शान्त करने की कोशिश कर रहे थे परन्तु वह गालियां दिये जारहा था।

     श्रीकृष्ण ने सभी को चुप रहने को कहा और बोले "इसे आज बोलने दो ।"

    फिरतो वह और गालियां देने लगा जब उसकी गालियौ की गिनती सौ पूरी होगयी तब श्रीकृष्ण ने उसे ललकारते हुए कहा " बस शिशुपाल बस यदि तूने इससे आगे एक भी गाली दी तो बचेगा नही़। क्यौकि अब बुआ को दिया बचन पूरा हो चुका है।"

     शिशुपाल बोला," तू क्या कर लेगा  तू भगौडा़ है तू कायर है इसतरह अनेक अपशब्द बोलने लगा।

उसी समय श्रीकृष्ण ने अपने चक्र सुदर्शन का आवाहन करके उसकी तरफ चला दिया।

      सभा में बैठे सभी राजा व सभासद हाहाकार करने लगे परन्तु चक्र सुदर्शन ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। और वह वापिस श्रीकृष्ण के पास चलागया।

       इस समय श्रीकृष्ण की उंगली में चोट लग गयी थी द्रोपदी ने उसी समय अपनी साडी़ में से पट्टी फाड़कर उनकी उंगली पर बाँध दी उस समय से ही राखी बांधने का प्रचलन शुरू होगया। इस राखी का बदला  श्रीकृष्ण ने द्रोपदी को कौरव सभा मे चीर बढा़कर दिया था।

        ऐसा कहा जाता है कि उस समय से रक्षाबंधन  का त्योहार  मनाया जाने लगा।

                   रक्षाबंधन  के इस पावन त्योहार. के मनाने के विषय में और भी अनेक पौराणिक  व एतिहासिक  कराएं  प्रसिध्द  है।


आजकल दैनिक  प्रतियोगिता हेतु रचना।

नरेश  शर्मा " पचौरो "

 


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6 Comments

Milind salve

04-Sep-2023 06:02 PM

Nice 👍🏼

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kashish

03-Sep-2023 04:27 PM

Nice

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KALPANA SINHA

03-Sep-2023 09:41 AM

Nice

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